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एक दिन पहले खबर आती है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलते हैं। इस मैराथन बैठक के बाद सूत्र बताते हैं कि संघ को लगता है कि यूपी में पिछड़ों और दलितों के बीच योगी जी को और ज्यादा काम करने की जरूरत है।
इस खबर के दो दिन बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कबीर की मरणस्थली संत कबीरदास नगर या यूं कहा जाए कि मगहर में रैली करने जा रहे हैं। कबीरपंथी आरोप लगा रहे हैं कि चार साल मोदी जी अपने संसदीय क्षेत्र काशी कई दफे आए लेकिन कबीर की जन्मस्थली आने का वक्त नहीं निकाल पाए और चुनावी साल में कबीर की याद मोदी जी को आई है। इस आरोप में चाहे सच्चाई हो या नहीं हो लेकिन यह बात जरूर सच है कि चुनावी साल में बीजेपी को यूपी में खासतौर से कबीर में संभावना दिखने लगी है।
दरअसल कबीर गरीबों, दलितों, पिछड़ों, शोषितों के मसीहा माने जाते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में कबीर की पहचान है, सामाजिक न्याय के लिए कबीर का नाम बड़े आदर से लिया जा सकता है। कबीर को दुनिया का पहला सच्चा समाजवादी भी कहा जा सकता है और इसका सबूत है उनका यह दोहा-
साईं इतना दीजिए जामे कुटुम्ब समाय ,
मैं भी भूखा न रहूं , साधु न भूखा जाए ।