Saturday, 13 September, 2025г.
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जया एकादशी 2020। व्रत, मुहूर्त, पूजाविधि, पौराणिक कथा, और महत्व। Jaya Ekadashi 2020 | अर्था

जया एकादशी 2020। व्रत, मुहूर्त, पूजाविधि, पौराणिक कथा, और महत्व। Jaya Ekadashi 2020 | अर्थाУ вашего броузера проблема в совместимости с HTML5
#Artha * जया एकदाशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। पूजन में भगवान विष्णु को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों अर्पित करना चाहिए। जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है। * जया एकादशी व्रत पूजा विधि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और वंदना की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है: 1. जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए। 2. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए। 3. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए। 4. द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये। * जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युद्धिष्ठिर के आग्रह पर जया एकादशी व्रत के महत्व और कथा का वर्णन किया। इस कथा के अनुसार, - इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था। देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था। उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं। उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे। - श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था। पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था। रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए। Don't forget to Share, Like & Comment on this video Subscribe Our Channel Artha : https://goo.gl/22PtcY Like us @ Facebook - https://www.facebook.com/ArthaChannel/ Check us out on Google Plus - https://goo.gl/6qG2sv Follow us on Twitter - https://twitter.com/ArthaChannel Follow us on Instagram -https://www.instagram.com/arthachannel/ Follow us on Pinterest - https://in.pinterest.com/channelartha/ Follow us on Tumblr - https://www.tumblr.com/blog/arthachannel
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