हरियाणवी रिवाज// नाचने का गीत$$ हरया सूट मेरी काली चोटी....... भरमा भरमा छाती हे
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हरियाणवी रिवाज की सभी बहनों ने सक्रांति का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाते हुए काफी हंसी, ठल्ले, गीत ,नाच किया! इस गीत के बोल कुछ इस तरह से हैं आज रोटी ले हाली की खेत में जाना पड़ा! वहां जाकर मैंने 200 तो मन्न पुले काटे जून रह गए बाकी! काट कूट क जब घर गई तो जले ने लाठी उठाकर मेरे को दोसो ठीक मारी और जूत रह गए बाकी! मार मूर क लाड भी दिखावे! कभी मेरे आंसू पूछ रहा है !कभी मेरे आंसुओं को पूछ रहा है !कभी मेरे लाड लड़ा रहा है! और बोल रहा है चोट कहां कहां लगी......... कुल मिलाकर कहना यह है! फिर भी प्यार है दोनों में! गुस्सा भी एक दूसरे को ही करेंगे! प्यार भी एक दूसरे को ही करेंगे! इसी को गृहस्ती कहते हैं!