Thursday, 11 September, 2025г.
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गम में डूबे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते है डलमऊ शमशान घाट के यह बांसुरी वादक

गम में डूबे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते है डलमऊ शमशान घाट के यह बांसुरी वादकУ вашего броузера проблема в совместимости с HTML5
गम में डूबे लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते है डलमऊ शमशान घाट के यह बांसुरी वादक शिवाकांत अवस्थी रायबरेली जनपद के डलमऊ में गंगा के घाट पर पहुंचने वाला हर व्यक्ति चाहे किसी मन्नत के प्रयोजन से गया हो या अंत्येष्टि में, हर कोई माखनलाल जोशी का फैन है। डलमऊ गंगा के घाट पर पहुंचने वाले हर व्यक्ति के कानों में माखनलाल बांसुरी वाले की बजाई बांसुरी की धुन गूंजती रहती है। आपको बता दें कि, प्राचीन काल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य बांसुरी हुआ करती थी। मुरली और श्री कृष्ण एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। जिस प्रकार मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती, ठीक उसी प्रकार डलमऊ में गंगा के घाट पर पहुंचने वाले हर व्यक्ति के कानों में माखनलाल की बजाई बांसुरी की धुन जब तक गुंजायमान नहीं होती तब तक उस व्यक्ति की नजरें गंगा के घाट पर किसी को तलाशती रहती है और उसके कान मुरली की धुन को सुनने के लिए आतुर रहते हैं। गौरतलब हो कि, रायबरेली के डलमऊ में गंगा के घाट पर बांसुरी बजाकर यहां पहुंचने वालों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले माखनलाल पुत्र स्वर्गीय रामभवन जोशी डलमऊ घाट के रहने वाले हैं। यह पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं और अपनी बूढ़ी मां के साथ रहकर उनकी सेवा परवरिश करते हैं। बाकी के इनके चार भाई अलग रहते हैं और अपने परिवार के साथ जीवन यापन करते हैं। माखनलाल बताते हैं कि, बांसुरी बजाने का शौक इन्हें बचपन से है। बांसुरी बजाने के साथ साथ माखनलाल अच्छा गीत भी गाते हैं। हमारे संवाददाता के साथ माखनलाल ने अपनी पुरानी कुछ यादें साझा करते हुए बताया कि, काफी समय पहले वे गंगा के घाट पर बांसुरी बजा रहे थे। तभी उनकी बांसुरी की धुन से मंत्रमुग्ध होकर कुछ साथी गंगा के तीर पर नाचने लगे लेकिन वहीं मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों को माखनलाल की लोकप्रियता दिल में चुभ गई और माखनलाल की पीतल की बनी बांसुरी छीनकर तोड़ दी गई। शांत स्वभाव, मृदुभाषी माखनलाल प्रत्युत्तर में कुछ नहीं कर सके और सन्तोष करके अपने घर चले गए परंतु, कुछ ही दिन पश्चात माखनलाल की बांसुरी छीनने वाले व्यक्ति की मौत हो गई। मौत से आहत परिवारी जनों ने गलती का एहसास कर माखनलाल के घर जाकर अनुनय विनय कर पुनः माखनलाल को नई खरीदी गई बांसुरी लौटाई। तब से बांसुरी वादक माखनलाल जोशी प्रतिदिन भोर में 5 बजे से लेकर शाम के 7 बजे तक डलमऊ के गंगा घाट पर बांसुरी बजाकर वहां पहुंचने वाले हर शख्स को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इससे प्राप्त हुए धन से वे अपना और अपनी मां का जीवनोपार्जन करते हैं। माखनलाल ने मां की सेवा के चलते अपनी शादी नहीं की है और न ही उनके मन में शादी करने को लेकर विचार है। उनके लिए सबसे बड़ी मां की पूजा, सबसे बड़ा धर्म मां और सबसे बड़ी सेवा मां की सेवा है। माखनलाल जोशी से मैं मिला, उन्हें जाना और सुना बांसुरी की धुन और गीत।
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