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पहलवान गामा. एक ऐसा नाम जिसके आगे सारा जमाना झुकता था। जिससे पूरी दुनिया के पहलवान डरते थे। जिसने पचास साल के अपने पहलवानी के करियर में कभी हार नहीं मानी। जिसने उस पत्थर को हंसते-हंसते उठा लिया जिसे 25 लोग मिलकर भी नहीं उठा पाए। जिसने हिंदुओं को बचाने के लिए अपने मुसलमान भाईयों से हाथा पाई कर ली। जिसने अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत को बनाने में लगा दी। आज उस पहलवान गामा की हम बात करेंगे।
'द ग्रेट गामा' जिसने 12 साल की उम्र में पहलवानों को हराया
22 मई, 1878 में अमृतसर में पैदा हुए पहलवान गामा का असल नाम ग़ुलाम मोहम्मद था।
लेकिन उस समय बहुत कम लोग ही जानते थे कि वे मुस्लिम हैं। क्योंकि वह तो 'द ग्रेट गामा' थे जिनके आगे पूरी दुनिया झुकती थी। पहली बार उन्हें चर्चा मिली उस दंगल से जो जोधपुर के राजा ने 1890 में करवाया था। छोटे उस्ताद गामा ने भी उस दंगल में हाज़िरी दे डाली थी। जोधपुर के राजा ने जब गामा की चपलता और कसरत देखी तो दंग रह गए। उन्हें कुछ एक पहलवानों से लड़ाया गया और उन्होंने सबको हरा दिया। गामा पहले 15 पहलवानों में आये। राजा ने गामा को विजेता घोषित किया।
1,200 किलो वजन का पत्थर उठाया
24 साल की उम्र में 'द ग्रेट गामा' ने 1,200 किलो वजन का पत्थर उठाकर पहलवानी की दुनिया में नया कीर्तिमान रच दिया। ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि इसी पत्थर को उठाने के लिए एक, दो, दस नहीं, पूरे के पूरे 25 लोग लगे हुए थे। लेकिन उस पत्थर को वे हिला नहीं पाए।
आखिर कौन थे 'ग्रेट गामा'
गामा का जन्म पंजाब के अमृतसर में कश्मीरी परिवार में हुआ था। उन्हें रेसलिंग की दुनिया में 'द ग्रेट गामा' के नाम से जाना जाने लगा। इनके पिता मोहम्मद अजीज बख्श भी एक जाने-माने रेसलर थे। सो, पहलवानी की शुरुआती शिक्षा इनके घर से ही हुई। पिता की मौत के बाद गामा को दतिया के महराजा ने गोद लिया और उन्हें पहलवानी की ट्रेनिंग दी। पहलवानी के गुर सीखते हुए गामा ने 10 साल की उम्र से पहलवानों को ज
थी नॉर्मल हाइट
ऐसा नहीं था कि गामा की कद-काठी काफी लंबी हो। उनकी हाइट नॉर्मल इंसानों की तरह 5'7 इंच की थी। लेकिन इनकी यह सामान्य कद-काठी कभी उनके लक्ष्य के सामने कभी आड़े नहीं आई। वह 1910 का दौर था, जब दुनिया में कुश्ती में अमेरिका के जैविस्को का बड़ा नाम हुआ करता था। लेकिन गामा ने उन्हें भी हरा दिया। गामा को हराने वाला पूरी दुनि
विश्व विजेता पहलवान गामा से लड़ने नहीं आया
इस चैंपियनशिप में पहलवान गामा के पहुंचने की भी कहानी काफी रोचक है। दरअसल लंदन में उन दिनों 'चैंपियंस ऑफ़ चैंपियंस' नाम की कुश्ती प्रतियोगिता होती थी। 1910 में अपने भाई के साथ गामा भी लंदन के लिए रवाना हो गए। लेकिन इस प्रतियोगिता के हिसाब से गामा की हाइट कम थी सो उन्हें प्रतियोगिता से बाहर कर दिया। तभी गामा ने गुस्से में ऐलान कर
उन दिनों विश्व कुश्ती में पोलैंड के स्तानिस्लौस ज्बयिशको, फ्रांस के फ्रैंक गाच और अमरीका के बेंजामिन रोलर काफी मशहूर थे। रोलर ने गामा की चुनौती स्वीकार की और गामा ने उन्हें डेढ़ मिनट में ही चित कर दिया और दुसरे राउंड में 10 मिनट से भी कम समय में उन्हें फिर पटखनी दे डाली! फिर अगले दिन गामा ने दुनिया भर से आये 12 पहलवानों को मिनटों में हराकर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। इससे थक-हार कर आयोजकों ने गामा को प्रतियोगिता में एंट्री दे दी।
इस प्रतियोगिता में सितम्बर 10, 1910 को गामा के सामने विश्व विजेता पोलैंड के स्तानिस्लौस ज्बयिशको थे। एक मिनट में गामा ने उन्हें गिरा दिया और फिर अगले ढाई घंटे तक वे फ़र्श से चिपका रहे ताकि चित न हो जाएं। मैच बराबरी पर खत्म हुआ। एक सप्ताह बाद फाइनल राउंड में ज्बयिशको, गामा से लड़ने आया ही नहीं और गाम को विजेता घोषित कर दिया गया। तब गामा ने कहा था, 'मुझे लड़कर हारने में ज़्यादा ख़ुशी मिलती बजाय बिना लड़े जीतकर!'
पीते थे 7.5 किलो दूध
गामा अपनी ट्रेनिंग और डाइट का पूरा खयाल रखते थे और उनकी डाइट भी उनकी तरह स्पेशल थी। वे एक वक्त में 7.5 किलो दूध पीते और उसके साथ 600 ग्राम बादाम खाते थे। इस दूध को भी 10 किलो से उबाल कर 7.5 किलो किया
हिंदुओं की रक्षा के लिए बने दीवार
हिंदुस्तान के बंटवारे के दौरान जब हिंदु-मुस्लिम आपस में लड़ने में लगे थे तब पहलवान गामा हिंदुओं की रक्षा के लिए दीवार बनकर खड़े थे।
तो इसलिए आज भी लोग उन्हें ग्रेट कहते हैं। इसलिए नहीं कि वे अपराजित थे। बल्कि इसलिए कि वे एक सच्चे इंसान थे। दोस्तों वीडियो लाइक करे ।और शेयर भी करें subscribeजरूर करें Thanks for watching